परिवर्तन टुडे चन्दौली
Story By- मनोज कुमार मिश्रा
चहनियां। क्षेत्र के महुअर गांव में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के सातवें व अंतिम दिन रविवार को कथावाचक आचार्य अभिषेक शास्त्री ने श्री कृष्ण व सुदामा की दोस्ती पर कहा कि भगवान श्री हरी विष्णु जो कृष्णावतार में थे और उनके बचपन के परम मित्र सुदामा जी की दोस्ती एक मिशाल रही है।

सुदामा जी एक गरीब बाम्हण थे वे सदैव नारायण व श्रीकृष्ण का जप करते थे जबकि वे जानते थे मेरा मित्र श्रीकृष्ण मथुरा का राजा है उसके पास जाने से मेरे गरीबी दूर हो जायेगी। लेकिन उन्हे यह भी डर था कि कहीं मैं उनके पास गया और कहा कि श्रीकृष्ण मेरे मित्र है, तो नगरवासी, उनके मंत्री, उनकी पत्नियां मेरे मित्र की हसी उड़ायेगे और मेरा परम सखा उनकी हसी का पात्र बन जायेगा जो मैं कत्तई बर्दास्त नही कर सकता कि मेरे कारण मेरा मित्र हसी का पात्र बन जाय। वही गरीबी सर चढकर बोलने लगी बच्चे कई दिनों से भूखे रहने लगे जिस पर उनकी पत्नी बसुन्धरा बच्चों की दशा को देखकर कहा क्यों न आप अपने मित्र से कुछ मदद मागते है। पत्नी के बार-बार प्रेरित करने सुदामा जी श्रीकृष्ण के यहॉ मथुरा जाते है। द्वारपाल नगरवासी उनको अचम्भे की तरह देखते है।

जब द्वारपाल जाकर भगवान श्रीकृष्ण से सुदामा जी की बात को बताता है कि एक गरीब ब्राम्हण द्वार पर खड़ा है और वह अपने आपको आपका मित्र बता रहा उसका नाम सुदामा है। वैसे ही भगवान श्रीकृष्ण एक पागल की भॉति दौड़े भागे नंगे पांव अपने मित्र से मिलने द्वार पर पहुच जाते है जब वहा सुदामा जी नही दिखे वो सड़कों पर सखा सुदामा, सखा सुदामा की आवाजे लगाकर दौड़ने लगे और जब अपने बचपन के मित्र सुदामा जी को देखते ही उनको गले लगाते हुए अपने महल में लिवा गये और वहा उनका आदर सम्मान किया जब भगवान श्रीकृष्ण उनकी पत्नी व बच्चों के बारे हाल चाल पूछते तो वे बस केवल एक बात कहते है कि सबकुछ ठीक है। लेकिन भगवान तो अर्न्तयामी है वह सब कुछ जानते थे और मित्र को सब कुछ बिना कुछ कहे दे दिया।
वही कथावाचक आचार्य अभिषेक शास्त्री ने आज के समाज को इंगित करते हुए कहा कि आज का मित्र केवल मित्र को छलने के लिए मित्रता करता और जब अपना काम बन जाता है तो मित्र को दूध में पड़े मक्खि की तरह निकाल कर फेक देता है लेकिन वह यह नही जानता कि नारायण सब कुछ देख रहा और उसका जबाब उसे देना होगा। श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती प्रेम, सम्मान, समर्पण और स्वार्थ रहित होने का एक आदर्श उदाहरण है, जो यह सिखाती है कि सच्ची दोस्ती धन या सामाजिक स्थिति पर आधारित नहीं होती। यह कहानी आज भी लोगों को सच्ची मित्रता के महत्व को समझने और उसे निभाने की प्रेरणा देती है।
वहीं उपस्थित व आयोजक लालजी तिवारी व लल्लन तिवारी, राजेश तिवारी, नीरज तिवारी, राहुल तिवारी नॉलेज सिटी (सेक्रेटरी) आनंद तिवारी, डॉ एके तिवारी, नीतीश, प्रवीण, विपुल आदि उपस्थित थे।