spot_img
26.4 C
Varanasi
Sunday, October 12, 2025

भाद्र मास की तीज व्रत आज: पति की लंबी आयु के लिए रखा व्रत

spot_img
spot_img
जरुर पढ़े
रजनी कांत पाण्डेय
रजनी कांत पाण्डेय
मैं रजनीकांत पाण्डेय पिछले कई वर्षो से पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ा हूँ इस दौरान कई राष्ट्रिय समाचार पत्रों में कार्य करने के उपरान्त ख़बरों के डिजिटल माध्यम को चुना है,मेरा ख़ास उद्देश्य जन सरोकार की खबरों को प्रमुखता से उठाना है एवं न्याय दिलाना है जिसमे आपका सहयोग प्रार्थनीय है.

परिवर्तन टुडे चन्दौली
सकलडीहा। भाद्र मास शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाया जाने वाला हरितालिका तीज व्रत भारतीय संस्कृति की अनादिकाल से चली आ रही पावन परंपराओं में से एक है। यह पर्व मुख्य रूप से विवाहित औरतों द्वारा अपने पति की दीर्घायु एवं अखंड सौभाग्य की कामना के लिए रखा जाता है। तीज व्रत को लेकर धार्मिक मान्यताएँ इतनी गहरी हैं कि इसे न सिर्फ सुहागिन महिलाएँ बल्कि अविवाहित युवतियाँ भी आदर्श जीवनसाथी की प्राप्ति हेतु करती हैं।

भाद्र मास की तृतीया के दिन प्रातःकाल ब्रह्म बेला में महिलाएँ स्नान–ध्यान करके पवित्र व्रत की शुरुआत करती है। सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित कर संकल्प लिया जाता है। इसके बाद 24 घंटे तक निर्जल रहकर कठोर उपवास का पालन किया जाता है। यह व्रत आसान नहीं माना जाता क्योंकि इसमें जल तक ग्रहण नहीं किया जाता, परंतु आस्था और विश्वास के आगे कठिनाई कोई मायने नहीं रखती। व्रती महिलाएँ पूरे दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा–अर्चना में लीन रहती हैं और रात्रि जागरण करके शिव–पार्वती की कथाएँ सुनती हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार

माता पार्वती ने कठोर तप कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। तभी से यह व्रत स्त्रियों के लिए अटूट विश्वास का प्रतीक माना जाता है। सुहागिनें इसे अपने पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की रक्षा हेतु करती हैं, वहीं अविवाहित कन्याएँ योग्य वर की प्राप्ति के लिए इसे करती हैं। यही कारण है कि यह पर्व सदियों से भारतीय संस्कृति और परंपराओं में रचा–बसा हुआ है।

इस व्रत की विशेषता यह है कि महिलाएँ पूरे दिन श्रृंगार करके पारंपरिक वेशभूषा में रहती हैं। लाल, पीले और हरे रंग की साड़ियाँ पहनकर, माथे पर सिंदूर और हाथों में चूड़ियाँ धारण करके वे अपनी सुहाग की निशानियों को और भी खास बना लेती हैं। घरों में विशेष रूप से शिव–पार्वती की प्रतिमाएँ सजाई जाती हैं और विधि–विधान से पूजन किया जाता है। पूजा में बेलपत्र, धतूरा, आक का फूल और पान विशेष महत्व रखते हैं।

ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी क्षेत्रों तक तीज व्रत का उल्लास देखने को मिलता है। कहीं सामूहिक रूप से महिलाएँ मंदिरों में जुटकर भजन–कीर्तन करती हैं तो कहीं घरों में पारंपरिक रीति–रिवाजों के साथ शिव–पार्वती का पूजन होता है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव का भी प्रतीक है।

हरितालिका तीज व्रत भारतीय स्त्रियों के अटूट समर्पण, त्याग और आस्था का अद्भुत उदाहरण है। यह व्रत पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आया है और आज भी उतनी ही श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जा रहा है। पति–पत्नी के पवित्र रिश्ते को और मजबूत बनाने वाला यह पर्व परिवार और समाज में एकजुटता तथा प्रेम का संदेश देता है।

spot_img
spot_img
लेटेस्ट पोस्ट

सकलडीहा मे छोटे आंबेडकर की प्रतिमा स्थापित होने पर समर्थकों ने किया हंगामा

परिवर्तन टुडे चन्दौलीसकलडीहा। कस्बा मे हाइवे निर्माण की जद में डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा आ रही थी। प्रतिमा को...

ख़बरें यह भी

error: Content is protected !!
Enable Notifications OK No thanks